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Thursday, 31 October 2019
एक नायाब फनकार
एक नायाब फनकार
खुदा-ए-रहमत
ना जाने कब किस पर बरसे।-2
कोई नहीं जानता।
दिन के बाद रात,
सूरज के बाद चाँद,
गरीबी के बाद अमीरी,
एक नायाब फनकार (रानू मंडल)
जिसके सिर पर अमीरी का ताज सजा
कभी दो वक्त की रोटी की मोहताज थी वो,
आज -खुदा-ए-रहमत,
बरसी महलो की रानी हुई वो,
टैंलेंट को किसी सिफारिश की नहीं
बल्कि पहचाने वाले की जरूरत होती हैं।-2
हीरे की.परख.जौहरी को होती हैं,
वहीं उस हीरे को तराश सकता है
वो जौहरी, वो आम आदमी था जिसने उनके फन को पहचाना
और उस हीरे को तराशा।
जो आज बुलंदियो को छू रही हैं।
खुदा -ए-रहमत- - - - - - कोई नहीं जानता।
at October 31, 2019
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I am barkha from b.sc second year student .lives in bahadurgarh
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