क्या वो दिन थे बचपन के सुहाने
क्या वो दिन थे बचपन के सुहाने,
क्यों इतनी दूर सब हो गए,
वो मम्मी की गोद, वो पापा के कंधे,
क्यों हम इतने बड़े हो गए।
वो मम्मी का पल्लू खींच खींच के आवाज लगाना ,
वो मम्मी का हमे खाना अपने हातो से खिलाना ,
वो छोटी सी बात पे पापा का डाट लगाना ,
फिर रोता हुआ हमे देख कर गले लगाना ,
वो दोस्तों की महफ़िल, वो शरारते वो नादानियां ,
वो बारिश में भीगते हुए गोलगपे खाना,
वो हमेशा साथ रहने के वादे करते जाना ,
वो रूठना मानना , वो हसना रुलाना ,
वो पढाई के बहाने पूरी रात बतियाना ,
क्या वो दिन थे बचपन के सुहाने ,,,
क्यों इतनी दूर सब हो गए। .....
अब वो ज़िद भी अपनी, सपने भी अपने ,
खुद ही खाना बनाना और खा के सो जाना ,
वो दोस्तों को याद करके आखो में पानी आ जाना ,
रोते ही रहना किसका न मनना, बस रोते हुए ही सो जाना
मंज़िलो को ढूंढ़ते ढूंढ़ते हम ये कहा खो गए,
अपनी ही तलाश में हम अपनों को छोड़ गए ,,
क्यों हम इतने बड़े हो गए.
क्यों हम इतने बड़े हो गए।