पयाॆवरण है हमारी जान
पर्यावरण है हमारी जान,
पर्यावरण है हमारी शान;
इंसान है इससे अनजान,
भोग रहा है कष्ट महान|
सोचता है इंसान यही,
सुलझाली उसने सारी पहेली;
किन्तु अभी अनगिनात है,
पयॊवरण मे अनजानी गली|
जीवन-मरण का भेद भला,
क्या मनुष्य जान पाया है?
कैसे आता है विचार मसि्तष्क मे,
क्या यह पहचान पाया है?
मनुष्य अपने अंहकार मे चूर,
होता जा रहा है पर्यावरण से दूर;
कर के नष्ट मनुष्य पॖकृति,
घटा रहा है अपनी जीवन गति|
यदि है अपने जीवन से प्यार,
तो करना होगा पर्यावरण का शृंगार;
रंग जीवन में भरेंगे तब,
स्वास्थ होगा पर्यावरण जब|