मुसाफ़िर
पथिक बन राह की अडचने.... हल कर लेना
पथिक बन काटें की सहज को सह लेना
.... गगनचुंबी बन ,स्वप्न की उड़ान भरने में अडिग रहना.... ,
आसमां में पक्षी .. गिर जाने के डर से उडना नहीं छोडता.....
वो अपनी उडान को, परिस्थितियों का मोहताज नहीं समझता...
वो रास्ता स्वयं बनाता है... और अपने मंजिल के शिखर को छू लेता है....
जब वह, ना बोलने वाला पक्षी.. साहसी होकर
उम्मीद नहीं छोड़ता....
तो हम तो... मनुष्य है...
फिर हम क्यूँ... हिम्मत को हरा दे ....
फिर हम क्यूँ...गिर जाने के डर से उड़ान ना भरे...
फिर हम क्यूँ.. यह विचार करें... कि हम कुछ नहीं कर सकते... .. और क्यूँ दूसरों की सोच को स्वयं पर
भारी पडने दे..
अपनी ताकत,, अपने सपने सब कुछ तो अपना हैं...
बस इन सबको पहचान कर..
हमें स्वयं को आगे बढ़ाना है...
हमें स्वयं को आगे बढ़ाना है...