Sapne
अकेला ही खडा इस बंजर जमीन पे,
दूर दूर तक कोई नहीं आखों मैं नींद है.
निंदो मैं सपना है !
आखे खुलते ही सपना पुरा करणे लग जाता हू,
और थोडा थोडा थोडा जीना सीखता हून.!
सपना करले पुरा दीलकी ये झिद है,
क्युंकी झप्पकर पलक जो आंख खुलती है
बस इतनी ही मेरी नींद है.!
नाराजगी है अपनो पे इस्लिये थोडासा है रोना,
सोचता हू कही आसू संग बेह ना जाये मेरा सपना.
फिर रूह की आवाज चीलाती है,
सपना पुरा करना है याद दिलाती है .
फिर नमसी आखे पोछता हू....
और थोडा थोडा थोडा जीना सिखता हून!