Sunshine
कुछ इस कदर तू आया रुबरु-ए-जिंदगी,
समझ नहीं पा रही कैसी ये तेरे संग बंदगी..
वैसै तो हुई थी पहले भी तुझसे मूलाकातें,
पर ना हुई थी कभी इतमिनान से बातें..
हजार उदासी के बीच जब तुझसे मूलाकातें हुई,
लगा जैसे जिंदगी खुद मूझे हँसाने आई..
तेरी नादानियाँ भूला देती मूझे सारी परेशानियाँ,
तुझे हराकर चलाती हमेशा मैं अपनी मनमानियाँ..
पर जिंदगी ने ढाए है इतने कहर,
डर रहता हर पल लग न जाए किसी की नजर..
रहेगा रिश्ता हमेशा ऐसे ही खास,
इतना तो है तुझपे विश्वास..
होगा शायद एक गजब का बव्वाल,
अरे पर बीतें तो ये दस साल..
अच्छा लगता है जब मुझसे हार जाता है तू,
मेरी शिकायतों में भी अपनी तारीफें ढूँढ लेता है तू..
नहीं मिलती मुझे दवाई किसी दवाखानें में,
सारे दर्द चले जाते तेरे संग मुस्कूराने में..
कैसे बयाँ करुँ तेरी खासियत,
सूबह की धूप सी तेरी अहमियत..
कुछ तो है जो खास है,
तभी तो दूर होकर भी तू इतने पास है।।